खुले आसमाँ की युं ओढ़े है चादर
कंधो पे लेके चले ढेरो बादल
कड़ी धूपमें भी चले इस डगर पे
किस्मत का सर पे युं रखके ये आँचल
कंधो पे लेके चले ढेरो बादल
कड़ी धूपमें भी चले इस डगर पे
किस्मत का सर पे युं रखके ये आँचल
संभल जायेंगे ...
बस बहल जायेंगे ....
ना मंज़िल की खबर ना रास्तो का ठिकाना
धूआँ सा है मंज़र है इतना बस जाना
सूखे ये लब्ज़ बेजुबान सारे अरमान
हिस्से में अपने है दर्द का ये गाना
बस बहल जायेंगे ....
ना मंज़िल की खबर ना रास्तो का ठिकाना
धूआँ सा है मंज़र है इतना बस जाना
सूखे ये लब्ज़ बेजुबान सारे अरमान
हिस्से में अपने है दर्द का ये गाना
संभल जायेंगे ...
बस बहल जायेंगे ....
लम्बी सफ़र है और ना कोई साथी
लगी भूख तो बस पिया सिर्फ पानी
पैरो की आदत है नंगा ही चलना
राहो की गर्द करे गर्म मनमानी
बस बहल जायेंगे ....
लम्बी सफ़र है और ना कोई साथी
लगी भूख तो बस पिया सिर्फ पानी
पैरो की आदत है नंगा ही चलना
राहो की गर्द करे गर्म मनमानी
संभल जायेंगे ...
बस बहल जायेंगे ....
बस बहल जायेंगे ....
फटी कमीज़ में है कुछ धागों के बाने
मिटटी का मानो लिबास है ये जाने
जेब में से गिरती है रोज़ रोज़ ख्वाहिशें
चाँद निकले हाथो में रक्खे चंद दाने
मिटटी का मानो लिबास है ये जाने
जेब में से गिरती है रोज़ रोज़ ख्वाहिशें
चाँद निकले हाथो में रक्खे चंद दाने
संभल जायेंगे ...
बस बहल जायेंगे ....
हर सुबह ये सूरज क्यूँ निकलता है युं
हर शाम एक जैसी ढल रही है क्यूँ
बस बहल जायेंगे ....
हर सुबह ये सूरज क्यूँ निकलता है युं
हर शाम एक जैसी ढल रही है क्यूँ
गौर से तू सुनले गलती तेरी खुदा ए
कुछ के नसीब का ही इतवार भूल गया तु.
कुछ के नसीब का ही इतवार भूल गया तु.
संभल जायेंगे ...
बस बहल जायेंगे ....
बस बहल जायेंगे ....
--निखिल जोशी
१४-१०-२०१२
१४-१०-२०१२